बुधवार, 28 नवंबर 2012

महात्मा जोतीबा फुले



आज आदरणीय जोतिबा फुले का स्मृति दिन है. उन्हो ने सत्यशोधक समाज की स्थापना की थी. 1873 में स्थापना के दो साल बाद 1875 में जब वे समाज की गतिविधियों का विवरण दे रहे थे, तब उन्होने अपनी बात इस तरह रखी थी:

"ब्राह्मण, पंडित, जोशी, उपाध्याय-पुरोहित आदि लोगों की दासता से शुद्र लोगों को मुक्त करने के लिए, जो अपने स्वार्थी ग्रंथो के द्वारा आज हजारों सालों से शुद्र लोगों को नीच समजकर गफलत में लूंटते आ रहे है. इसलिए उपदेश और ज्ञान के द्वारा उनको उनके सही अधिकार समजाने के लिए, मतलब, धर्म और व्यवहार से संबंधित ब्राह्णों के नकली और स्वार्थी ग्रंथो से उनको मुक्ति दिलाने के लिए कुछ जानकार शुद्र लोगों ने इस समाज की स्थापना दि. 24 सितम्बर, 1873 को की है. इस समाज में राजनीतिक सवालों पर बोलना सख्त मना है." 

जोतिबा फुले उन्नीसवीं सदी के महान भारतीय विचारक थे. आज हमारे देश में कोई गोपालक या कोई दलित मुख्यमंत्री बन सकता है तो इसका श्रेय जोतीबा को ही जाता है. जोतीबा की परंपरा बाबासाहब अंबेडकर ने आगे बढाई थी. हमें उसी परंपरा को आगे ले जाना है. नागपुर के एल जी मेश्राम विमलकीर्ति ने महात्मा फुले रचनावली का संपादन किया है. जिसका प्रकाशन राधाकृष्ण प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड (7-31, अंसारी मार्ग, दरियागंज, नई दिल्ली-110 002) द्वारा किया गया है. और संपर्क इ-मेइल है - info@radhakrishnaprakashan.com. हर विचारशील व्यक्ति के घर में यह ग्रंथ होने ही चाहिए.

"अरे, सभी मराठी अखबारों के संपादक ब्राह्मण होने की वजह से उनको अपनी जाति के लोगों के विरुद्ध लिखने के लिए हाथ नहीं चल रहा है. जब युरोपीयन मुखिया था, उस समय वह उन ब्राह्मणों की चतुराई चलने नहीं देता था. उस समय सभी ब्राह्मण संगठित होकर उनपर आरोप लगाते थे कि उनके ऐसा करने से हम सभी प्रजा का इस तरह से नुकसान हुआ है. इस तरह ये ब्राह्मण लोग उनके विरुद्ध इस तरह गलत-सलत अफवाएं फैलाकर उनको इतना त्रस्त कर देते थे कि उनको अपने मुखियापद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पडता था और वे आगे इस म्युनीसीपालीटी का नाम लेना भी छोड देते थे."
(पेइज 219, महात्मा जोतीबा फुले रचनावली-1)
 

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