2015-16 का वित्तीय वर्ष खत्म होने में सिर्फ दो माह बाकी है और खबर आई हे कि गुजरात सरकार अमुनन तमाम विभागों में 35 फिसदी से कम खर्च कर पाई है. अर्थात 65 फिसदी पैसा ऐसा का वैसा पडा रहा है. बजट के एक्सपर्ट बता रहे हैं कि अगले मार्च तक ज्यादा से ज्यादा दस फिसदी खर्च कर सकती है सरकार. जनतंत्र में अगर कोई सरकार लोक कल्याण के कार्यक्रमों के पीछे पेसा खर्च नहीं करती है तो उसे शासन करने का कोई अधिकार नहीं है. इसका मतलब साफ है. आनंदी पटेल के तमाम मंत्री अपनी जेबें भरने में ही व्यस्त है, उन्हे प्रजा कल्याण के कार्यो में कोई दिलचस्पी नहीं है.
सोमवार, 21 दिसंबर 2015
शनिवार, 19 दिसंबर 2015
शंकराचार्य और बुद्ध
शंकराचार्य को अगर
शंकराचार्य बने रहेना है तो उसे बुद्ध का विरोध करना ही पडेगा. क्योंकि बुद्ध ने
कहा था कि हर चीज से संशय करो, चाहे आपके मातापिता ने कही हो, या आपकी परंपरा ने
आपको शीखाई हो या किसी तथाकथित दैवी किताब में लिखी हो. शंकराचार्य ने बुद्ध की
विचारधारा को यहां जड से उखाडने का काम किया. उसने कहा, संशयात्मा विनिश्यति.
अर्थात जो भी इन्सान संशय करेगा, उसका विनाश होगा. पृथ्वी के आसपास सूर्य नहीं,
बल्कि सूर्य के इर्दगिर्द पृथ्वी घूमती है ऐसा कहनेवाला गेलीलीयो, सेब को वृक्ष से
गीरता देखकर गुरुत्वाकर्षण खोजनेवाला न्यूटन और युरेका युरेका कहेते कहेते
हमामखाने से नंगा दौडनेवाले आर्कीमीडीझ से लेकर रीलेटीवीटी का खोजी आइन्स्टाइन,
इन सारे विज्ञानियों ने शंकराचार्य की बात मानी होती तो हम लोग अभी भी गुफाओं में
रहेते होते और आसमान में बीजली का तांडव देखकर किसी पथ्थर के आगे नतमस्तक खडे होते.
सोमवार, 14 दिसंबर 2015
एक कहानी श्लोक की
श्लोक का स्कुल
का वह पहला दिन था. उसकी मां पारुल उसे और उसके बडे भाई हर्ष को लेकर मेरी ओफीस पर
आई थी. श्लोक ने मेरा पैर छुआ, मैंने उसे अपनी बांहों में ले लिया. श्लोक की मां
बहुत खुश थी. श्लोक उससे भी ज्यादा खुश था, क्योंकि उसे प्रथम कक्षा में मुफ्त
प्रवेश मील गया था. बहुत सारे बच्चों को हमने आरटीई एक्ट के तहत 25 फीसदी क्वोटा
में प्रवेश दिलवाया, मगर श्लोक को जब एडमीशन मीला तब मुझे वाकई बहुत प्रसन्नता हूई
थी. क्योंकि मैं जानता था कि पीछले पांच साल श्लोक और उसके परिवार के लिए कैसे
गुजरे थे.
श्लोक के पिता
भानुकुमार श्रीमाली दलितों की गुरु ब्राह्मण जाति के थे. हमारे जन्म, मृत्यु
के प्रसंगों में यह जाति पुरोहित का काम करती है. अब इस जाति का परंपरागत काम कम
होता जा रहा है और दूसरी तरफ सरकारी नौकरियों में तथाकथित आरक्षण पर्याप्त नहीं है.
भानुकुमार निजी क्षेत्र की एक कंपनी में प्युन का काम करते थे. आमदनी कम और उपर
महंगाई की मार. भानुकुमार को कीडनी का असाध्य रोग हुआ. अहमदाबाद की सीवील अस्पताल
के कीडनी डीसीझ एन्ड रीसर्च सेन्टर में उन्हे लाया गया. जब डोक्टर ने कहा कि भानुकुमार
की कीडनी फेइल हो चूकी है और अब उसे बदलनी होगी, तब पारुल के सर पर बीजली तूट पडी.
भानुकुमार की उम्र 46 साल थी और पारुल भी 33 साल की थी. जिंदगी की नैया अभी तो
मज़धार में थी.
भानुकुमार के
माता-पिता उनकी कीडनी बदलने की बात का विरोध कर रहे थे. मगर पारुल अपने पति की
जिंदगी किसी भी किंमत पर बचाना चाहती थी. भानुकुमार को कीडनी सेन्टर में लाया गया,
उसी दिन भावनगर के लाभुबहेन गोहिल की लडकी नयना को भी सेन्टर में लाया गया था. नयना
की भी कीडनी फेइल हो चूकी थी. नयना को कोई डोनर नहीं मीलता था क्योकिं उसका ब्लड
ग्रुप ´o´ पोझीटीव था, जो दुर्लभ
था. इस तरफ भानुकुमार का ब्लड ग्रुप ´o´ पोझीटीव नहीं था, मगर
पारुल का ब्लडग्रुप ´o´ पोझीटीव निकला. पारुल ने
अपनी कीडनी नयना को और नयना की मां ने भानुकुमार को अपनी कीडनी देने का फेंसला
किया. 2014 के 7 अक्तुबर के दिन दोनों का ओपरेशन किया गया. भानुकुमार और नयना
दोनों बच गए और दोनों के परीवर खुशहाल होकर अपने घर गए.
मगर किस्मत अभी
पारुल की अग्निपरीक्षा ले रही थी. छ माह पश्चात भानुकुमार फिर से बिमार हुए. उनकी
कीडनी को इन्फेक्शन लगा. उनकी देहांत हो गई. पारुल और उसके दो बच्चों ने अपने माथे
का छत्र गंवा दिया. एक औरत ने अपने पति के लिए अपनी कीडनी दे दी. मुझे नहीं लगता
कि इससे बडा त्याग कोई अपनी जिंदगी में कर सकता है. पारुल हिंमत नहीं हारी. वह
मुस्कराते कहती है, मेरा पति मर गया, मगर नयना अभी जिंदा है. नयना चार साल से
डायालीसीस पर थी. अब उसकी सेहत अच्छी है. नयना की मां लाभुबहेन अक्सर पारुल से बात
करती रहती है.
पति के देहांत के
बाद पारुल कैसे भी करके अपने बच्चों का और सास का निर्वाह कर लेती है. उसे दोनों
बच्चों की पढाई की बडी चिंता थी. किसीने उसे कहा कि दलित हक्क रक्षक मंच शिक्षा के
मुद्दे पर काम करता है, मंच तुम्हारी मदद करेगा. वह हमारे पास आई. 2015 के जून माह
में 25 फीसदी क्वोटा के तहत एडमीशन की सारी प्रक्रिया पूरी होने के बाद भी हमने
श्लोक का फोर्म भरा. डीइओ कचहरी से लडकर श्लोक को प्राइवेट स्कुल में एडमीशन
दिलवाया. श्लोक के बडे भाई हर्ष की भी स्कुल फी का बंदोबस्त संस्था ने कर दिया.
पारुल अभी भी जिंदगी की परेशानियां झेल रही है, मगर उसे मालुम है, दलित हक्क रक्षक
मंच उसके साथ है.
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