शनिवार, 5 जनवरी 2013

ब्राह्मण का बेटा

स्टेशनरी की दुकान पर बीस साल का एक युवान आया नये साल की डायरी खरीदने के लिए. पांच-सात डायरियां देखी. एक डायरी उसे अच्छी लगी.
"क्या कीमत है इसकी?"
"एकसौ अस्सी रूपया."
"बहुत ज्यादा है. थोडा कम करो. देढसौ में दो. मैं ब्राह्मण का बेटा हुं."
दुकानदार मान नहीं रहा था.
"ठीक है. एकसौ साठ में दे दो. आज नये साल का पहला दिन हैं." युवान ने सस्ते में डायरी लेने का एक और तर्क दिया.
लगता है अब भी दुकानदार मान नहीं रहा.
"मैं आप के बेटे जैसा हुं. अब तो डायरी दे दो."
"ठीक है. मगर, एकसौ साठ से एक रूपया कम नहीं."
युवान का चहेरा खील उठा, मानो ओलीम्पीक का मेडल जित लिया हो. दुकानदार को एकसौ साठ रूपया देकर, डायरी  अपने थैले में रखी और उसे कुछ याद आया.
"एक बिल बना दो, भैया, दोसौ रूपये का, प्लीझ."

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