"मुंह मे तंबाकु की छोटी सी गड्डी जैसा हमारा गांव", परेश रावल 'मालामाल वीक्ली' फिल्म में उसके गांव के बारे में ऐसा कहता है. वैसे परेश मोदी-भक्त है, मगर
एक्टर अच्छा है. उसकी यह बात हमें अभी इस लिए याद आ गई कि हमारे देश में ब्राह्मण
लोग भी मुंह में तंबाकु की छोटी सी गड्डी जैसे है, और जिस तरह से तंबाकु की छोटी
सी गड्डी पूरे शरीर में नीकोटीन का जहर फैला देती है, उसी तरह ब्राह्मण हमारे शरीर
और मन में 'हिन्दुत्व' का जहर फैला देते है.
यह बात हमें इसलिए भी याद आ गई कि अभी अभी हमारे ब्लोग में 'हिन्दु राष्ट्र किसे कहते है?' पोस्ट पर सूरत के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के किसी राजपुरोहित ने 'जागो हिन्दुओ, हिन्दुस्थान हमारा है' नाम से टीप्पणी करते हुए लिखा है, "आप जेसे लोग इस हिन्दुस्थान मै पाप हो काश तुम
भि गोधरा कान्ड मै मर गये होते बेव्कुफ जिन कार सेव्को को जिन्दा जलाया वो क्या
अतन्वादि थे." कितनी सटीक बात कही है, इस
संघी ने. हम सचमुच बेवकुफ है, वर्ना तंबाकु की छोटी गड्डी जितने लोग पूरे देश पर
राज कैसे कर सकते हैं?
और
गुजरात के हमारे दलित तो वाकई में बेवकूफ है, वर्ना जिन संघीओं ने 1985 में 70 दिन
तक गांधीनगर सचिवालय में दलितों के रोस्टर के खिलाफ आंदोलन किया और रोस्टर खतम
किया, दलितों के आरक्षण के खिलाफ बार बार दंगा किया और सत्ता में आने के बाद
40,000 बेकलोग की जगह कहां छू मंतर कर दी गई, किसी को पता तक चलने नहीं दिया, जिन
संघीओ ने दलितों और आदिवासीओं को हिन्दुत्व के नाम पर उक्सा कर मुसलमानों के खिलाफ
खडा कर दिया, उनकी चालाकी कोई समज नहीं पा रहा है, और वे हमें आज बेवकूफ कहने की
हिंमत कर सकते हैं. हम वाकई में मूर्ख ही है.
मगर
हम हमें हमारी मूर्खता का पता चल गया है. ये हमारे सारे ब्लोग्स उसी का नतीजा है.
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