हम उन्हे रूदाली
फिल्म के गायक के रूप में जानते हैं, मगर बहुत कम लोगों को इस बात का पता है कि
महान गायक भुपेन हजारीका दलित थे, डोम जाति के थे. भुपेनदा के लिए संगीत सामाजिक
परीवर्तन का शस्त्र था. अछूत, अंत्यज डोम जाति पर थोपे गए अस्पृश्यता के कलंक के
खिलाफ बचपन से उनके मन में रोष था. युवावस्था में जाति का यही कलंक वह जिससे प्यार
करते थे उस ब्राह्मण कन्या से दूर कर देता है.
आप का जन्म वर्ष
1926 में आसाम के सादीया क्षेत्र में हुआ था. गुवाहाती में अभ्यास करने के बाद आप
बनारस हिन्दु युनिवर्सीटी में पढाई के लिए गए थे. आप ने 1952 में कोलम्बिया
युनिवर्सीटी (न्यु योर्क) से मास कम्युनिकेशन में पीएचडी की उपाधी प्राप्त की थी. वहां
उनके थीसीस का नाम था, 'युझ ऑफ सीनेमा
फोर मास एज्युकेशन'.
भुपेनदा आसाम की
संस्कृति के जागृत प्रहरी थे. भाषा आंदोलन के दौरान उनके संगीत ने आसामी युवाजगत
पर गहरी असर छोडी थी. ब्लेक सींगर पाउल रोबीन्सन आपके दोस्त थे और आप का सबसे
लोकप्रिय गीत 'विस्तीर्णो दुपारे' रोबीन्सन के गीत 'मेन रीवर' पर आधारीत था,
जिसमें आपने युगो से गरीबी तथा दमन की साक्षी बनी गंगा नदी की कहानी का सुंदर
निरुपण किया है.
आप ने उल्फा के
खिलाफ भी आवाज उठाई थी, जिसे आप 'अनिष्ट' कहते थे. इन्डीयन पीपल्स
थीयेटर के साथ आप का जुडना महज संयोग नहीं था, क्योंकि आप प्रारंभ से वाम
विचारधारा से काफी प्रभावित थे. बोलीवुड को देश का एक मात्र सांस्कृतिक प्रतिनिधि
समजनेवाले लोग भुपेनदा को रूदाली के गीत 'दिल हुम हुम करे' से जानते है, मगर
भुपेनदा के संगीत के पीछे इस देश की हजारों साल पुरानी अस्पृश्यता की गहरी वेदना
छीपी थी, इसका किसी को पता नहीं था, उनके अपने भारतीय दलितों को भी नहीं. हम
भारतीय दलित प्रांतवाद में कितने डटे है, डुबे हैं, इसका इससे बडा प्रमाण क्या होगा?
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